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Tuesday 31 January 2012

कैसी सोच में डूबे हो क्यों घबराए हो आप

ॐ साईं राम


कैसी सोच में डूबे हो क्यों घबराए हो आप
सुनो साईं के जाप से धुल जाते हैं पाप

Monday 30 January 2012

हिन्दू और मुस्लिम का हमदम है शिर्डी में

ॐ साईं राम

हिन्दू और मुस्लिम का हमदम है शिर्डी में
काबा और काशी का संगम है शिर्डी में

Sunday 29 January 2012

कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

ॐ साईं राम

कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा
लेकिन ये साईं शक्ति कुछ दर्द कम करेगी
कुछ अपने सर पे लेगी कुछ तेरे सर रहेगा
कर्मों का फल तो बन्दे तुझे भोगना पड़ेगा

भगवान क्या नही पूछेगा – क्या क्या पूछेगा ?

ॐ सांई राम
भगवान क्या नही पूछेगा – क्या क्या पूछेगा ?

[1] भगवान यह नही
पूछेगा कि हम कौन सी
ब्रान्ड की कार Use करते थे,
पंरतु यह जरुर
पूछेगा कि
कितने जरुरतवालो और अशक्त लोगो को
उनके घर तक पहुँचाने की मदद थी!

Saturday 28 January 2012

बाबाजी ने सुनी है मेरी पुकार

ॐ साईं राम


बाबाजी  ने  सुनी  है  मेरी  पुकार,
बुलाया  है  मुझे  अपने  दरबार,

दरबार  में साईं  जी  के,
हर  पाप  मिट  जाते  है,
अपने  दुखो  को  भूलकर,
खुशियाँ  हम  पाते  है,
साईं  के  दरबार  में,
आता  है  मुझे  करार,
इसीलिए  बाबाजी  से  मैंने,
की  थी  फरियाद,

Friday 27 January 2012

बिन साईं के मैं ऐसी, जैसे अनाथ हो कोई

ॐ सांई राम
बिन साईं के मैं ऐसी, जैसे अनाथ हो कोई
बिन बाबा के मैं ऐसी, जैसे पत्थर हो राह का कोई

Thursday 26 January 2012

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 42

महासमाधि की ओर,
भविष्य की आगाही – रामचन्द्र दादा पाटील और तात्या कोते पाटील की मृत्यु टालना, लक्ष्मीबाई शिन्दे को दान, समस्त प्राणियों में बाबा का वास, अन्तिम क्षण ।
बाबा ने किस प्रकार समाधि ली, इसका वर्णन इस अध्याय में किया गया है ।
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*प्रस्तावना*
गत अध्यायों की कथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि गुरुकृपा की केवल एक किरण ही भवसागर के भय से सदा के लिये मुक्त कर देती है तथा मोक्ष का पथ सुगम करके दुःख को सुख में परिवर्तित कर देती है । यदि सदगुरु के मोहविनाशक पूजनीय चरणों का सदैव स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे समस्त कष्टों और भवसागर के दुःखों का अन्त होकर जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा हो जायेगा । इसीलिये जो अपने कल्याणार्थ चिन्तित हो, उन्हें साई समर्थ के अलौकिक मधुर लीलामृत का पान करना चाहिये । ऐसा करने से उनकी मति शुद्घ हो जायेगी । प्रारम्भ में डाँक्टर पंडित का पूजन तथा किस प्रकार उन्होंने बाबा को त्रिपुंड लगाया, इसका उल्लेख मूल ग्रन्थ में किया गया है । इस प्रसंग का वर्णन 11 वें अध्याय में किया जा चुका है, इसलिये यहाँ उसका दुहराना उचित नहीं है ।

*भविष्य की आगाही*
पाठको! आपने अभी तक केवल बाबा के जीवन-काल की ही कथायें सुनी है । अब आप ध्यानपूर्वक बाबा के निर्वाणकाल का वर्णन सुनिये । 28 सितम्बर, सन् 1918 को बाबा को साधारण-सा ज्वर आया । यह ज्वर 2-3 दिन तक रहा । इसके उपरान्त ही बाबा ने भोजन करना बिलकुल त्याग दिया । इससे उनका शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण एवं दुर्बल होने लगा । 17 दिनों के पश्चात् अर्थात् 15 अक्टूबर, सन् 1918 को 2 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया । (यह समय प्रो. जी. जी. नारके के तारीख 5-11-1918 के पत्र के अनुसार है, जो उन्होंने दादासाहेब खापर्डे को लिखा था और उस वर्ष की साईलीलापत्रिका के 7-8 पृष्ठ (प्रथम वर्ष) में प्रकाशित हुआ था) । इसके दो वर्ष पूर्व ही बाबा ने अपने निर्वाण के दिन का संकेत कर दिया था, परन्तु उस समय कोई भी समझ नहीं सका । घटना इस प्रकार है । विजयादशमी के दिन जब लोग सन्ध्या के समय 'सीमोल्लंघन' से लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गये । सिर पर का कपड़ा, कफनी और लँगोटी निकालकर उन्होंने उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई धूनी में फेंक दिये । बाबा के द्वारा आहुति प्राप्त कर धूनी द्विगुणित प्रज्वलित होकर चमकने लगी और उससे भी कहीं अधिक बाबा के मुख-मंडल की कांति चमक रही थी । वे पूर्ण दिगम्बर खड़े थे और उनकी आँखें अंगारे के समान चमक रही थी । उन्होंने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि, "लोगो! यहाँ आओ, मुझे देखकर पूर्ण निश्चय कर लो कि मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान ।" सभी भय से काँप रहे थे । किसी को भी उनके समीप जाने का साहस न हो रहा था । कुछ समय बीतने के पश्चात् उनके भक्त भागोजी शिन्दे, जो महारोग से पीड़ित थे, साहस कर बाबा के समीप गये और किसी प्रकार उन्होंने उन्हें लँगोटी बाँध दी और उनसे कहा कि, "बाबा ! यह क्या बात है ? देव ! आज दशहरा (सीमोल्लंघन) का त्योहार है ।" तब उन्होंने जमीन पर सटका पटकते हुए कहा कि, यह मेरा सीमोल्लंघन है । लगभग 11 बजे तक भी उनका क्रोध शान्त न हुआ और भक्तों को चावड़ी जुलूस निकलने में सन्देह होने लगा । एक घण्टे के पश्चात् वे अपनी सहज स्थिति में आ गये और सदा की भांति पोशाक पहनकर चावड़ी जुलूस में सम्मिलित हो गये, जिसका वर्णन पूर्व में ही किया जा चुका है । इस घटना द्वारा बाबा ने इंगित किया कि जीवन-रेखा पार करने के लिये दशहरा ही उचित समय है । परन्तु उस समय किसी को भी उसका असली अर्थ समझ में न आया । बाबा ने और भी अन्य संकेत किये, जो इस प्रकार है । :-

*रामचन्द्र दादा पाटील की मृत्यु टालना*
कुछ समय के पश्चात् रामचन्द्र पाटील बहुत बीमार हो गये । उन्हें बहुत कष्ट हो रहा था । सब प्रकार के उपचार किये गये, परन्तु कोई लाभ न हुआ और जीवन से हताश होकर वे मृत्यु के अंतिम क्षणों की प्रतीक्षा करने लगे । तब एक दिन मध्याहृ रात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिरहाने प्रगट हुए । पाटील उनके चरणों से लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाएँ छोड़ दी है । अब कृपा कर मुझे इतना तो निश्चित बतलाइये कि मेरे प्राण अब कब निकलेंगे? दया-सिन्धु बाबा ने कहा कि, 'घबराओ नहीं । तुम्हारी हुँण्डी वापस ले ली गई है और तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे । मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन् 1918 में विजयादशमी के दिन उसका देहान्त हो जायेगा । किन्तु यह भेद किसी से प्रगट न करना और न ही किसी को बतलाना । अन्यथा वह अधिक भयभीत हो जायेगा ।' रामचन्द्र अब पूर्ण स्वस्थ हो गये, परन्तु वे तात्या के जीवन के लिये निराश हुए । उन्हें ज्ञात था कि बाबा के शब्द कभी असत्य नहीं निकल सकते और दो वर्ष के पश्चात ही तात्या इस संसर से विदा हो जायेगा । उन्होंने यह भेद बाला शिंपी के अतिरिक्त किसी से भी प्रगट न किया । केवल दो ही व्यक्ति – रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी तात्या के जीवन के लिये चिन्ताग्रस्त और दुःखी थे ।
रामचन्द्र ने शैया त्याग दी और वे चलने-फिरने लगे । समय तेजी से व्यतीत होने लगा । शके 1840 का भाद्रपद समाप्त होकर आश्विन मास प्रारम्भ होने ही वाला था कि बाबा के वचन पूर्णतः सत्य निकले । तात्या बीमार पड़ गये और उन्होंने चारपाई पकड़ ली । उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि अब वे बाबा के दर्शनों को भी जाने में असमर्थ हो गये । इधर बाबा भी ज्वर से पीड़ित थे । तात्या का पूर्ण विश्वास बाबा पर था और बाबा का भगवान श्री हरि पर, जो उनके संरक्षक थे । तात्या की स्थिति अब और अधिक चिन्ताजनक हो गई । वह हिलडुल भी न सकता था और सदैव बाबा का ही स्मरण किया करता था । इधर बाबा की भी स्थिति उत्तरोत्तर गंभीर होने लगी । बाबा द्वारा बतलाया हुआ विजयादशमी का दिन भी निकट आ गया । तब रामचन्द्र दादा और बाला शिंपी बहुत घबरा गये । उनके शरीर काँप रहे थे, पसीने की धारायें प्रवाहित हो रही थी, कि अब तात्या का अन्तिम साथ है । जैसे ही विजया-दशमी का दिन आया, तात्या की नाड़ी की गति मन्द होने लगी और उसकी मृत्यु सन्निकट दिखलाई देने लगी । उसी समय एक विचित्र घटना घटी । तात्या की मृत्यु टल गई और उसके प्राण बच गये, परन्तु उसके स्थान पर बाबा स्वयं प्रस्थान कर गये और ऐसा प्रतीत हुआ, जैसे कि परस्पर हस्तान्तरण हो गया हो । सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने तात्या के लिये प्राण त्यागे । ऐसा उन्होंने क्यों किया, यह वे ही जाने, क्योंकि यह बात हमारी बुद्घि के बाहर की है । ऐसा भी प्रतीत होता है कि बाबा ने अपने अन्तिम काल का संकेत तात्या का नाम लेकर ही किया था ।
दूसरे दिन 16 अक्टूबर को प्रातःकाल बाबा ने दासगणू को पंढरपुर में स्वप्न दिया कि मसजिद अर्रा करके गिर पड़ी है । शिरडी के प्रायः सभी तेली तम्बोली मुझे कष्ट देते थे । इसलिये मैंने अपना स्थान छोड़ दिया है । मैं तुम्हें यह सूचना देने आया हूँ कि कृपया शीघ्र वहाँ जाकर मेरे शरीर पर हर तरह के फूल इकट्ठा कर चढ़ाओ । दासगणू को शिरडी से भी एक पत्र प्राप्त हुआ और वे अपने शिष्यों को साथ लेकर शिरडी आये तथा उन्होंने बाबा की समाधि के समक्ष अखंड कीर्तन और हरिनाम प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने स्वयं फूलो की माला गूँथी और ईश्वर का नाम लेकर समाधि पर चढ़ाई । बाबा के नाम पर एक वृहद भोज का भी आयोजन किया गया ।

*लक्ष्मीबाई को दान*
विजयादशमी का दिन हिन्दुओं को बहुत शुभ है और सीमोल्लंघन के लिये बाबा द्वारा इस दिन का चुना जाना सर्वथा उचित ही है । इसके कुछ दिन पूर्व से ही उन्हें अत्यन्त पीड़ा हो रही थी, परन्तु आन्तरिक रुप में वे पूर्ण सजग थे । अन्तिम क्षण के पूर्व वे बिना किसी की सहायता लिये उठकर सीधे बैठ गये और स्वस्थ दिखाई पड़ने लगे । लोगों ने सोचा कि संकट टल गया और अब भय की कोई बात नहीं है तथा अब वे शीघ्र ही नीरोग हो जायेंगे । परन्तु वे तो जानते थे कि अब मैं शीघ्र ही विदा लेने वाला हूँ और इसलिये उन्होंने लक्ष्मीबाई शिन्दे को कुछ दान देने की इच्छा प्रगट की ।

*समस्त प्राणियों में बाबा का निवास*
लक्ष्मीबाई एक उच्च कुलीन महिला थी । वे मसजिद में बाबा की दिन-रात सेवा किया करती थी । केवल भगत म्हालसापति तात्या और लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त रात को मसजिद की सीढ़ियों पर कोई नहीं चढ़ सकता था । एक बार सन्ध्या समय जब बाबा तात्या के साथ मसजिद में बैठे हुए थे, तभी लक्ष्मीबाई ने आकर उन्हे नमस्कार किया । तब बाबा कहने लगे कि, "अरी लक्ष्मी, मैं अत्यन्त भूखा हूँ ।" वे यह कहकर लौट पड़ी कि, "बाबा, थोड़ी देर ठहरो, मैं अभी आपके लिये रोटी लेकर आती हूँ ।" उन्होंने रोटी और साग लाकर बाबा के सामने रख दिया, जो उन्होंने एक भूखे कुत्ते को दे दिया । तब लक्ष्मीबाई कहने लगी कि, "बाबा यह क्या? मैं तो शीघ्र गई और अपने हाथ से आपके लिये रोटी बना लाई । आपने एक ग्रास भी ग्रहण किये बिना उसे कुत्ते के सामने डाल दिया । तब आपने व्यर्थ ही मुझे कष्ट क्यों दिया ?" बाबा न उत्तर दिया कि, "व्यर्थ दुःख न करो । कुत्ते की भूख शान्त करना मुझे तृप्त करने के बराबर ही है । कुत्ते की भी तो आत्मा है । प्राणी चाहे भले ही भिन्न आकृति-प्रकृति के हो, उनमें कोई बोल सकते है और कोई मूक है, परन्तु भूख सबकी एक सदृश ही है । इसे तुम सत्य जानो कि जो भूखों को भोजन कराता है, वह यथार्थ में मुझे ही भोजन कराता है । यह एक अकाट्य सत्य है ।" इस साधारण- सी घटना के द्वारा बाबा ने एक महान् आध्यात्मिक सत्य की शिक्षा प्रदान की कि बिना किसी की भावनाओं को कष्ट पहुँचाये किस प्रकार उसे नित्य व्यवहार में लाया जा सकता है । इसके पश्चात् ही लक्ष्मीबाई उन्हें नित्य ही प्रेम और भक्तिपूर्वक दूध, रोटी व अन्य भोजन देने लगी, जिसे वे स्वीकार कर बड़े चाव से खाते थे । वे उसमें से कुछ खाकर शेष लक्ष्मीबाई के द्वारा ही राधाकृष्ण माई के पास भेज दिया करते थे । इस उच्छिष्ट अन्न को वे प्रसाद स्वरुप समझ कर प्रेमपूर्वक पाती थी । इस रोटी की कथा को असंबन्ध नहीं समझना चाहिये । इससे सिद्ध होता है कि सभी प्राणियों में बाबा का निवास है, जो सर्वव्यापी, जन्म-मृत्यु से परे और अमर है ।
बाबा ने लक्ष्मीबाई की सेवाओं को सदैव स्मरण रखा । बाबा उनको भुला भी कैसे सकते थे? देह-त्याग के बिल्कुल पूर्व बाबा ने अपनी जेब में हाथ डाला और पहले उन्होंने लक्ष्मी को पाँच रुपये और बाद में चार रुपये, इस प्रकार कुल नौ रुपये दिये । यह नौ की संख्या इस पुस्तक के अध्याय 12 में वर्णित नवविधा भक्ति की द्योतक है अथवा यह सीमोल्लंघन के समय दी जाने वाली दक्षिणा भी हो सकती है । लक्ष्मीबाई एक सुसंपन्न महिला थी । अतएव उन्हें रुपयों की कोई आवश्यकता नहीं थी । इस कारण संभव है कि बाबा ने उनका ध्यान प्रमुख रुप से श्रीमदभागवत के स्कन्ध 11, अध्याय 10 के श्लोंक सं. 6 की ओर आकर्षित किया हो, जिसमे उत्कृष्ट कोटि के भक्त के नौ लक्षणों का वर्णन है, जिनमें से पहले 5 और बाद मे 4 लक्षणों का क्रमशः प्रथम और द्वितीय चरणों में उल्लेख हुआ है । बाबा ने भी उसी क्रम का पालन किया (पहले 5 और बाद में 4; कुल 9) केवल 9 रुपये ही नहीं बल्कि नौ के कई गुने रुपये लक्ष्मीबाई के हाथों में आये-गये होंगे, किन्तु बाबा के द्वारा प्रद्त्त यह नौ (रुपये) का उपहार वह महिला सदैव स्मरण रखेगी ।

*अंतिम क्षण*
बाबा सदैव सजग और चैतन्य रहते थे और उन्होंने अन्तिम समय भी पूर्ण सावधानी से काम लिया । उन्होंने अन्तिम समय सबको वहाँ से चले जाने का आदेश दिया । चिंतामग्न काकासाहेब दीक्षित, बापूसाहेब बूटी और अन्य महानुभाव, जो मसजिद में बाबा की सेवा में उपस्थित थे, उनको भी बाबा ने वाड़े में जाकर भोजन करके लौट आने को कहा । ऐसी स्थिति में वे बाबा को अकेला छोड़ना तो नहीं चाहते थे, परन्तु उनकी आज्ञा का उल्लंघन भी तो नहीं कर सकते थे । इसलिये इच्छा ना होते हुए भी उदास और दुःखी हृदय से उन्हें वाड़े को जाना पड़ा । उन्हें विदित था कि बाबा की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है और इस प्रकार उन्हें अकेले छोड़ना उचित नहीं है वे भोजन करने के लिये बैठे तो, परन्तु उनके मन कहीं और (बाबा के साथ) थे । अभी भोजन समाप्त भी न हो पाया था कि बाबा के नश्वर शरीर त्यागने का समाचार उनके पास पहुँचा और वे अधपेट ही अपनी अपनी थाली छोड़कर मसजिद की ओर भागे और जाकर देखा कि बाबा सदा के लिये बयाजी आपा कोते की गोद में विश्राम कर रहे है । न वे नीचे लुढ़के और न शैया पर ही लेटे, अपने ही आसन पर शान्तिपूर्वक बैठे हुए और अपने ही हाथों से दान देते हुए उन्होंने यह मानव-शरीर त्याग दिया । सन्त स्वयं ही देह धारण करते है तथा कोई निश्चित ध्येय लेकर इस संसार में प्रगट होते है ओर जब देह पूर्ण हो जाता है तो वे जिस सरलता और आकस्मिकता के साथ प्रगट होते है, उसी प्रकार लुप्त भी हो जाया करते है ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

मेरे साईं, मेरे घर आओ

ॐ सांई राम
 ॐ साईं, श्री साईं, जय जय साईं... ॐ साईं राम!!!
आओ साईं, मेरे साईं, मेरे घर आओ
आओ साईं, मेरे साईं, मेरे घर आओ

Wednesday 25 January 2012

कृष्ण कन्हैया साईं

ॐ साईं राम

 कृष्ण  कन्हैया  साईं
गोपाला  है  साईं
मुरली  मनोहर  साईं
लीलाधर  है  साईं

Tuesday 24 January 2012

हमारे सपनों में आया कीजिये

ॐ साईं राम


हमारे सपनों में आया कीजिये,
हमें ऐसे न भुलाया कीजिये,
अपने चरणों में बिठाया कीजिये,
बाबा हमें शिर्डी बुलाया कीजिये ।

Monday 23 January 2012

साईं सच्चरित्र सार

ॐ साईं राम


 जिस तरह कीड़ा कपड़ो को कुतर डालता है,

उसी तरह इर्ष्या मनुष्य को

Sunday 22 January 2012

श्री साईं कष्ट निवारण मंत्र

ॐ साईं राम
कष्टों की काली छाया दुखदायी है, जीवन में घोर उदासी लाई है ।
संकट को टालो सांई दुहाई है, तेरे सिवा ना कोई सहाई है ।
मेरे मन तेरी मूरत समाई है, हर पल हर क्षण महिमा गाई है ।
घर मेरे कष्टों की आँधी आई है, आपने क्यों मेरी सुध भुलाई है ।

Saturday 21 January 2012

चले साईं के देस

ॐ साईं राम
 हम मतवाले हैं
चले साईं के देस
यहाँ सभी को चैन मिलेगा
कभी न लागे ठेस

Friday 20 January 2012

साईं बाबा की पालकी चली

ॐ साईं राम
 साईं  बाबा  की  पालकी  चली
कष्ट  भक्तों  के  टालती  चली
पालकी  पे  सवार, पहने  फूलों  के  हार
क्या  सुन्दर  लगे  मखमली

Thursday 19 January 2012

आओ साईं - Remembering Megha - A Great Devotee of Baba

ॐ साईं राम

Dear Sai Devotees,


OM SRI SAI RAM to all...

Time to remember MEGHA, a great devotee of Baba. All Sai Devotees know  about Megha and how he was fully devoted to Baba and how much Baba loved him in return.


This great Devotee, MEGHA,  attained 'sadgathi' at Shirdi, on 19th  Jan 1912 (at 4am) in the morning. So it is  now exactly 100 years since he left his mortal coil, which was fully in the service of Baba in his final years.

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 41

*चित्र की कथा, चिंदियों की चोरी और ज्ञानेश्वरी के पठन की कथा ।* 
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गत अध्याय में वर्णित घटना के नौ वर्ष पश्चात् अली मुहम्मद हेमाडपंत से मिले और वह पिछली कथा निम्निखित रुप में सुनाई । 

"एक दिन बम्बई में घूमते-फिरते मैंने एक दुकानदार से बाबा का चित्र खरीदा । उसे फ्रेम कराया और अपने घर (मध्य बम्बई की बस्ती में) लाकर दीवार पर लगा दिया । मुझे बाबा से स्वाभाविक प्रेम था । इसलिये मैं प्रतिदिन उनका श्री दर्शन किया करता था । जब मैंने आपको (हेमाडपंत को) वह चित्र भेंट किया, उसके तीन माह पूर्व मेरे पैर में सूजन आने के कारण शल्यचिकित्सा भी हुई थी । मैं अपने साले नूर मुहम्मद के यहाँ पड़ा हुआ था । खुद मेरे घर पर तीन माह से ताला लगा था और उस समय वहाँ पर कोई न था । केवल प्रसिद्ध बाबा अब्दुल रहमान, मौलाना साहेब, मुहम्मद हुसेन, साई बाबा, ताजुद्दीन बाबा और अन्य सन्त चित्रों के रुप में वही विराजमान थे, परन्तु कालचक्र ने उन्हें भी वहाँ न छोड़ा । मैं वहाँ (बम्बई) बीमार पड़ा हुआ था तो फिर मेरे घर में उन लोगों (फोटो) को कष्ट क्यों हो? ऐसा समझ में आता है कि वे भी आवागमन (जन्म और मृत्यु) के चक्कर से मुक्त नहीं है । अन्य चित्रों की गति तो उनके भाग्यनुसार ही हुई, परन्तु केवल श्री साईबाबा का ही चित्र कैसे बच निकला, इसका रहस्योदघाटन अभी तक कोई नहीं कर सका है । इससे श्री साईबाबा की सर्वव्यापकता और उनकी असीम शक्ति का पता चलता है ।" 

*"कुछ वर्ष पूर्व मुझे मुहम्मद हुसेन थारिया टोपण से सन्त बाबा अब्दुल रहमान का चित्र प्राप्त हुआ था, जिसे मैंने अपने साले नूर मुहम्मद पीरभाई को दे दिया, जो गत आठ वर्षों से उसकी मेज पर पड़ा हुआ था । एक दिन उसकी दृष्टि इस चित्र पर पड़ी, तब उसने उसे फोटोग्राफर के पास ले जाकर उसकी बड़ी फोटो बनवाई और उसकी कापियाँ अपने कई रिश्तेदारों और मित्रों में वितरित की । उनमें से एक प्रति मुझे भी मिली थी, जिसे मैंने अपने घर की दीवार पर लगा रखा था । नूर मुहम्मद सन्त अब्दुल रहमान के शिष्य थे । जब सन्त अब्दुल रहमान साहेब का आम दरबार लगा हुआ था, तभी नूर मुहम्मद उन्हें वह फोटो भेंट करने के हेतु उनके समक्ष उपस्थित हुए । फोटो को देखते ही वे अति क्रोधित हो नूर मुहम्मद को मारने दौड़े तथा उन्हें बाहर निकाल दिया । तब उन्हें बड़ा दुःख और निराशा हुई । फिर उन्हें विचार आया कि मैंने इतना रुपया व्यर्थ ही खर्च किया, जिसका परिणाम अपने गुरु के क्रोध और अप्रसन्नता का कारण बना । उनके गुरु मूर्ति पूजा के विरोधी थे, इसलिये वे हाथ में फोटो लेकर अपोलो बन्दर पहुँचे और एक नाव किराये पर लेकर बीच समुद्र में वह फोटो विसर्जित कर आये । नूर मुहम्मद ने अपने सब मित्रों और सम्बन्धियों से भी प्रार्थना कर सब फोटो वापस बुला लिये (कुल छः फोटो थे) और एक मछुए के हाथ से बांद्रा के निकट समुद्र में विसर्जित करा दिये ।" 

*इस समय मैं अपने साले के घर पर ही था । तब नूर मुहम्मद ने मुझसे कहा कि यदि तुम सन्तों के सब चित्रों को समुद्र में विसर्जित करा दोगे तो तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओगे । यह सुनकर मैंने मैनेजर मेहता को अपने घर भेजा और उसके द्वारा घर में लगे हुए सब चित्रों को समुद्र में विसर्जित करा दिया । दो माह पश्चात जब मैं अपने घर वापस लौटा तो बाबा का चित्र पूर्ववत् लगा देखकर मुझे महान् आश्चर्य हुआ । मैं समझ न सका कि मेहता ने अन्य सब चित्र तो निकालकर विसर्जित कर दिये, पर केवल यही चित्र कैसे बच गया ? तब मैंने तुरन्त ही उसे निकाल लिया और सोचने लगा कि कहीं मेरे साले की दृष्टि इस चित्र पर पड़ गई तो वह इसकी भी इतिश्री कर देगा । जब मैं ऐसा विचार कर ही रहा था कि इस चित्र को कौन अच्छी तरह सँभाल कर रख सकेगा, तब स्वयं श्री साईबाबा ने सुझाया कि मौलाना इस्मू मुजावर के पास जाकर उनसे परामर्श करो और उनकी इच्छानुसार ही कार्य करो । मैंने मौलाना साहेब से भेंट की और सब बाते उन्हें बतलाई । कुछ देर विचार करने के पस्चात् वे इस निर्णय पर पहुँचे कि इस चित्र को आपको (हेमाडपंत) ही भेंट करना उचित है, क्योकि केवल आप ही इसे उत्तम प्रकार से सँभालने के लिये सर्वथा सत्पात्र है । तब हम दोनों आप के घर आये और उपयुक्त समय पर ही यह चित्र आपको भेंट कर दिया । इस कथा से विदित होता है कि बाबा त्रिकालज्ञानी थे और कितनी कुशलता से समस्या हल कर भक्तों की इच्छायें पूर्ण किया करते थे । निम्नलिखित कथा इस बात का प्रतीक है कि आध्यात्मिक जिज्ञासुओं पर बाबा किस प्रकार स्नेह रखते तथा किस प्रकार उनके कष्ट निवारण कर उन्हें सुख पहुँचाते थे ।"

*चिन्दियों की चोरी और ज्ञानेश्वरी का पठन* 

*श्री. बी. व्ही. देव, जो उस समय डहाणू के मामलेदार थे, को दीर्घकाल से अन्य धार्मिक ग्रन्थों के साथ-साथ ज्ञानेश्वरी के पठन की तीव्र इच्छा थी । (ज्ञानेश्वरी भगवदगीता पर श्री ज्ञानेश्वर महाराज द्वारा रचित मराठी टीका है ।) वे भगवदगीता के एक अध्याय का नित्य पाठ करते तथा थोड़े बहुत अन्य ग्रन्थों का भी अध्ययन करते थे । परन्तु जब भी वे ज्ञानेश्वरी का पाठ प्रारम्भ करते तो उनके समक्ष अनेक बाधाएँ उपस्थित हो जाती, जिससे वे पाठ करने से सर्वथा वंचित रह जाया करते थे । तीन मास की छुट्टी लेकर वे शिरडी पधारे और तत्पश्चात वे अपने घर पौड में विश्राम करने के लिये भी गये । अन्य ग्रन्थ तो वे पढ़ा ही करते थे, परन्तु जब ज्ञानेश्वरी का पाठ प्रारम्भ करते तो नाना प्रकार के कलुषित विचार उन्हें इस प्रकार घेर लेते कि लाचार होकर उसका पठन स्थगित करना पड़ता था । बहुत प्रयत्न करने पर भी जब उनको केवल दो चार ओवियाँ पढ़ना भी दुष्कर हो गया, तब उन्होंने यह निश्चय किया कि जब दयानिधि श्री साई ही कृपा करके इस ग्रन्थ के पठन की आज्ञा देंगे, तभी उसका श्रीगणेश करुँगा । सन् 1914 के फरवरी मास में वे सहकुटुम्ब शिरडी पधारे । तभी श्री. जोग ने उनसे पूछा कि क्या आप ज्ञानेश्वरी का नित्य पठन करते है ? श्री. देव ने उत्तर दिया कि "मेरी इच्छा तो बहुत है, परन्तु मैं ऐसा करने में सफलता नहीं पा रहा हूँ । अब तो जब बाबा की आज्ञा होगी, तभी प्रारम्भ करुँगा ।" श्री, जोग ने सलाह दी कि ग्रन्थ की एक प्रति खरीद कर बाबा को भेंट करो और जब वे अपने करकमलों से स्पर्श कर उसे वापस लौटा दे, तब उसका पठन प्रारम्भ कर देना । श्री. देव ने कहा कि, "मैं इस प्रणाली को श्रेयस्कर नहीं समझता, क्योंकि बाबा तो अन्तर्यामी है और मेरे हृदय की इच्छा उनसे कैसे गुप्त रह सकती है ? क्या वे स्पष्ट शब्दों में आज्ञा देकर मेरी मनोकामना पूर्ण न करेंगें?" 

*श्री. देव ने जाकर बाबा के दर्शन किये और एक रुपया दक्षिणा भेंट की । तब बाबा ने उनसे बीस रुपये दक्षिणा और माँगी, जो उन्होंने सहर्ष दे दी । रात्रि के समय श्री. देव ने बालकराम से भेंट की और उनसे पूछा, "आपने किस प्रकार बाबा की भक्ति तथा कृपा प्राप्त की है ?" बालकराम ने कहा, "मैं दूसरे दिन आरती समाप्त होने के पश्चात् आपको पूर्ण वृतान्त सुनाऊँगा ।" दूसरे दिन जब श्री. देवसाहब दर्शनार्थ मस्जिद में आये तो बाबा ने फिर बीस रुपये दक्षिणा माँगी, जो उन्होंने सहर्ष भेंट कर दी । मस्जिद में भीड़ अधिक होने के कारण वे एक ओर एकांत में जाकर बैठ गये । बाबा ने उन्हें बुलाकर अपने समीप बैठा लिया । आरती समाप्त होने के पश्चात जब सब लोग अपने घर लौट गये, तब श्री. देव ने बालकराम से भेंट कर उनसे उनका पूर्व इतिहास जानने की जिज्ञासा प्रगट की तथा बाबा द्वारा प्राप्त उपदेश और ध्यानादि के संबंध में पूछताछ की । बालकराम इन सब बातों का उत्तर देने ही वाले थे कि इतने में चन्द्रू कोढ़ी ने आकर कहा कि श्री. देव को बाबा ने याद किया है । जब देव बाबा के पास पहुँचे तो उन्होंने प्रश्न किया कि वे किससे और क्या बातचीत कर रहे थे? श्री. देव ने उत्तर दिया कि वे बालकराम से उनकी कीर्ति का गुणगान श्रवण कर रहे थे । तब बाबा ने उनसे पुनः 25 रुपये दक्षिणा माँगी, जो उन्होंने सहर्ष दे दी । फिर बाबा उन्हें भीतर ले गये और अपना आसन ग्रहण करने के पश्चात् उन पर दोषारोपण करते हुए कहा कि, "मेरी अनुमति के बिना तुमने मेरी चिन्दियों की चोरी की है ।" श्री. देव ने उत्तर दिया "भगवन! जहाँ तक मुझे स्मरण है, मैंने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है ।" परन्तु बाबा कहाँ मानने वाले थे? उन्होंने अच्छी तरह ढँढ़ने को कहा । उन्होंने खोज की, परन्तु कहीं कुछ भी न पाया । तब बाबा ने क्रोधित होकर कहा कि तुम्हारे अतिरिक्त यहाँ और कोई नहीं हैं । तुम्ही चोर हो । तुम्हारे बाल तो सफेद हो गये है और इतने वृद्ध होकर भी तुम यहां चोरी करने को आये हो? इसके पश्चात् बाबा आपे से बाहर हो गये और उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गई । वे बुरी तरह से गालियाँ देने और डाँटने लगे । देव शान्तिपूर्वक सब कुछ सुनते रहे । वे मार पड़ने की भी आशंका कर रहे थे कि एक घण्टे के पश्चात् ही बाबा ने उनसे वाड़े में लौटने को कहा । वाड़े को लौटकर उन्होंने जो कुछ हुआ था, उसका पूर्ण विवरण जोग और बालकराम को सुनाया । दोपहर के पश्चात बाबा ने सबके साथ देव को भी बुलाया और कहने लगे कि शायद मेरे शब्दों ने इस वृद्ध को पीड़ा पहुँचाई होगी । इन्होंने चोरी की है और इसे ये स्वीकार नहीं करते है । उन्होंने देव से पुनः बारह रुपये दक्षिणा माँगी, जो उन्होंने एकत्र करके सहर्ष भेंट करते हुए उन्हें नमस्कार किया । तब बाबा देव से कहने लगे कि, "तुम आजकल क्या कर रहे हो ?" देव ने उत्तर दिया कि, "कुछ भी नहीं ।" तब बाबा ने कहा, "प्रतिदिन पोथी (ज्ञानेश्वरी) का पाठ किया करो । जाओ, वाडें में बैठकर क्रमशः नित्य पाठ करो और जो कुछ भी तुम पढ़ो, उसका अर्थ दूसरों को प्रेम और भक्तिपूर्वक समझाओ । मैं तो तुम्हें सुनहरा शेला (दुपट्टा) भेंट देना चाहता हूँ, फिर तुम दूसरों के समीप चिन्दियों की आशा से क्यों जाते हो? क्या तुम्हें यह शोभा देता है ?" 

*पोथी पढ़ने की आज्ञा प्राप्त करके देव अति प्रसन्न हुए । उन्होंने सोचा कि मुझे इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो गई है और अब मैं आनन्दपूर्वक पोथी (ज्ञानेश्वरी) पढ़ सकूँगा । उन्होंने पुनः साष्टांग नमस्कार किया और कहा कि, "हे प्रभु! मैं आपकी शरण हूँ । आपका अबोध शिशु हूँ । मुझे पाठ में सहायता कीजिये ।" अब उन्हें चिन्दियों का अर्थ स्पष्टतया विदित हो गया था । उन्होंने बालकराम से जो कुछ पूछा था, वह चिन्दी स्वरुप था । इन विषयों में बाबा को इस प्रकार का कार्य रुचिकर नहीं था । क्योंकि वे स्वयं प्रत्येक शंका का समाधान करने को सदैव तैयार रहते थे । दूसरों से निरर्थक पूछताछ करना वे अच्छा नहीं समझते थे, इसलिये उन्होंने डाँटा और क्रोधित हुए । देव ने इन शब्दों को बाबा का शुभ आर्शीवाद समझा तथा वे सन्तुष्ट होकर घर लौट गये । 

*यह कथा यहीं समाप्त नहीं होती । अनुमति देने के पश्चात् भी बाबा शान्त नहीं बैठे तथा एक वर्ष के पश्चात ही वे श्री. देव के समीप गये और उनसे प्रगति के विषय में पूछताछ की। 2 अप्रैल, सन् 1914 गुरुवार को सुबह बाबा ने स्वप्न में देव से पूछा कि, "क्या तुम्हें पोथी समझ में आई?" जब देव ने स्वीकारात्मक उत्तर न दिया तो बाबा बोले कि, "अब तुम कब समझोगे?" देव की आँखों से टप-टप करके अश्रुपात होने लगा और वे रोते हुए बोले कि, "मैं निश्चयपूर्वक कह रहा हूँ कि, हे भगवान् ! जब तक आपकी कृपा रुपी मेघवृष्टि नहीं होती, तब तक उसका अर्थ समझना मेरे लिये सम्भव नहीं है और यह पठन तो भारस्वरुप ही है ।" तब वे बोले कि, "मेरे सामने मुझे पढ़कर सुनाओ । तुम पढ़ने में अधिक शीघ्रता किया करते हो ।" फिर पूछने पर उन्होंने अध्यात्म विषयक अंश पढ़ने को कहा । देव पोथी लाने गये और जब उन्होंने नेत्र खोले तो उनकी निद्रा भंग हो गई थी । अब पाठक स्वयं ही इस बात का अनुमान कर लें कि देव को इस स्वप्न के पश्चात् कितना आनंद प्राप्त हुआ होगा ? 

*(श्री. देव अभी (सन् 1944) जीवित है और मुझे गत 4-5 वर्षों के पूर्व उनसे भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । जहाँ तक मुझे पता चला है, वह यही है कि वे अभी भी ज्ञानेश्वरी का पाठ किया करते है । उनका ज्ञान अगाध और पूर्ण है । यह उनके साई लीला के लेख से स्पष्ट प्रतीत होता है) । (ता. 19.10.1944)

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

आपका शुक्रिया है ... आपका शुक्रिया है

ॐ साईं राम
 आपसे  क्या  कहूँ  देवा,

आपसे  क्या  मिला  है,


मुझे  जीवन  दान,


माँ  का  प्यार  बाबा ,


सब  आपसे  ही  मिला  है,


आपका  शुक्रिया  है  ......आपका  शुक्रिया  है .....



जब  दुखों  की  थी  आंधी  आई,


आपने  वरदहस्त  रखा  मुझ  पर  साईं ,


आपका  शुक्रिया  है  .....आपका  शुक्रिया  है .....



आपने  जीने  की  कला  है  सिखलाई,


दुनिया  में  मैं  आपकी  भक्त  कहलाई,


आपका  शुक्रिया  है ..... आपका  शुक्रिया  है ....



जब  साथ  न  देने  आया  कोई ,


आपने  हर  कदम  हर  मोड़  पर  संभाला  साईं,


आपका  शुक्रिया  है  ......आपका  शुक्रिया  है ...



जब  आँखों  में  आंसू  थे,


तब  आप  ही  आये  थे  आंसू  पोंछने  साईं.....


आपका  शुक्रिया  है ...... आपका  शुक्रिया  है ....



जब  याद  किया  आपको  बाबा,


मन   निर्मल  पावन  हुआ  साईं ,


आपका  शुक्रिया  है  .......आपका  शुक्रिया  है ...



जब  जब  भी  मैं  गिरी,


आपने  आकर  उठा  लिया  साईं,


आपका  शुक्रिया  है  .......आपका  शुक्रिया  है ...



आपसे  क्या  कहू  देवा,

 
आपसे  क्या  मिला  है,
 
मुझे  जीवन  दान,
 
माँ  का  प्यार  बाबा,
 
सब  आपसे  ही  मिला  है,
 
आपका  शुक्रिया  है  ......आपका  शुक्रिया  है .....

                                                                      

ॐ  साईं  राम, जय  साईं  नाथ.....

विशेष आभार :-
प्रिया, विभूति  मलिक जी

 -: आज का साईं सन्देश :-
आटा पीसने से तात्पर्य : -
 
शिर्डी वासी सोचकर,
जो भी अर्थ लगाय ।
मस्तक में हेमांड के,
अर्थ अलग ही आय ।।

अर्थ  करें  हेमांड जी,
ऐसा  अर्थ  बताय ।
साठ बरस  तक  पीसकर,
साईं  कष्ट  मिटाय ।।


 

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Wednesday 18 January 2012

श्री साई बावनी

ॐ सांई राम

 श्री साई बावनी

जय ईश्वर जय साई दयाल, तू ही जगत का पालनहार,

दत्त दिगंबर प्रभु अवतार, तेरे बस में सब संसार!

ब्रम्हाच्युत शंकर अवतार, शरनागत का प्राणाधार,

दर्शन देदो प्रभु मेरे, मिटा दो चौरासी फेरे!

कफनी तेरी एक साया, झोली काँधे लटकाया,

नीम तले तुम प्रकट हुए, फकीर बन के तुम आए!

कलयुग में अवतार लिया, पतित पावन तुमने किया,

शिरडी गाँव में वास किया, लोगो को मन लुभा लिया!

चिलम थी शोभा हाथों की, बंसी जैसे मोहन की,

दया भरी थी आंखों में, अमृतधारा बातों में!

धन्य द्वारका वो माई, समां गए जहाँ साई,

जल जाता है पाप वहाँ , बाबा की है धुनी जहाँ!

भुला भटका में अनजान, दो मुझको अपना वरदान,

करुना सिंधु प्रभु मेरे , लाखो बैठे दर पर तेरे!

जीवनदान श्यामा पाया, ज़हर सांप का उतराया!

प्रलयकाल को रोक लिया, भक्तों को भय मुक्त किया,

महामारी को बेनाम किया, शिर्डिपुरी को बचा लिया!

प्रणाम तुमको मेरे इश , चरणों में तेरे मेरा शीश,

मन को आस पुरी करो, भवसागर से पार करो!

भक्त भीमाजी था बीमार, कर बैठा था सौ उपचार,

धन्य साई की पवित्र उदी, मिटा गई उसकी शय व्याधि!

दिखलाया तुने विथल रूप, काकाजी को स्वयं स्वरूप,

दामु को संतान दिया, मन उसका संतुशत किया!

कृपाधिनी अब कृपा करो, दीन्दयालू दया करो,

तन मन धन अर्पण तुमको, दे दो सदगति प्रभु मुझको!

मेधा तुमको न जाना था, मुस्लिम तुमको माना था,

स्वयं तुम बन के शिवशंकर, बना दिया उसका किंकर!

रोशनाई की चिरागों में, तेल के बदले पानी से,

जिसने देखा आंखों हाल, हाल हुआ उसका बेहाल!

चाँद भाई था उलझन में, घोडे के कारण मन में,

साई ने की ऐसी कृपा , घोडा फिर से वह पा सका!

श्रद्धा सबुरी मन में रखों, साई साई नाम रटो,

पुरी होगी मन की आस, कर लो साई का नित ध्यान!

जान का खतरा तत्याँ का , दान दिया अपनी आयु का,

ऋण बायजा का चुका दिया, तुमने साई कमाल किया!

पशुपक्षी पर तेरी लगन, प्यार में तुम थे उनके मगन,

सब पर तेरी रहम नज़र , लेते सब की ख़ुद ही ख़बर!

शरण में तेरे जो आया , तुमने उसको अपनाया,

दिए है तुमने ग्यारह वचन, भक्तो के प्रति लेकर आन!

कण-कण में तुम हो भगवान, तेरी लीला शक्ति महान,

कैसे करूँ तेरे गुणगान , बुद्धिहीन मैं हूँ नादान!

दीन्दयालू तुम हो हम सबके तुम हो दाता,

कृपा करो अब साई मेरे , चरणों में ले ले अब तुम्हारे!

सुबह शाम साई का ध्यान , साई लीला के गुणगान,

दृढ भक्ति से जो गायेगा , परम पद को वह पायेगा!

हर दिन सुबह शाम को, गाए साई बवानी को,

साई देंगे उसका साथ , लेकर हाथ में हाथ!

अनुभव त्रिपती के यह बोल, शब्द बड़े है यह अनमोल,

यकीन जिसने मान लिया , जीवन उसने सफल किया!

साई शक्ति विराट स्वरूप , मन मोहक साई का रूप,

गौर से देखों तुम भाई, बोलो जय सदगुरु साई!

 

॥ अनंत कोटी ब्रम्हांड नायक राजाधिराज योगीराज परं ब्रम्हं श्री सच्चिदानंद सदगुरू श्री साईनाथ महाराज की जय ॥

 -: आज का साईं सन्देश :-

ख़ुशी मना हेमांड जी,

घटनाएँ लख जाय |

लिखें चरित अवतार का,

साईं लीला गाय ||

 

जान रहे सब लोग भी,

साईं कृपा कराय |

उनके ही आशीष से,

पन्त सफलता पाय ||

 

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Tuesday 17 January 2012

सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला

ॐ साईं राम
 राम,श्याम शिव भोला, ख़ुदा मुहम्मद मौला,
सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला 
नानक,बुध और कबीरा, नामदेव जी,तुलसी,मीरा
साईं भजन किया सब ने, नाम का पहना चोला
राम,श्याम,शिव भोला, ख़ुदा मुहम्मद मौला,
सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला

अब्दुल्ला और लक्ष्मीबाई, ये सब जपते साईं साईं
जन्नत का दर खोल दिया, जिसने जैकारा बोल दिया
राम,श्याम,शिव भोला, ख़ुदा मुहम्मद मौला,
सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला

ॐ नाम में साईं रहते, विद्वान् संत ये कहते
अदभुत उसकी लीला है, वो दाता बड़ा है भोला
राम,श्याम,शिव भोला, ख़ुदा मुहम्मद मौला,
सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला

निरंकार साकार है वो, धरती सागर संसार है वो
भक्तों के दिल के अन्दर, सागर में साईं टटोला 
राम,श्याम,शिव भोला, ख़ुदा मुहम्मद मौला,
सब का मालिक एक है, यही बात साईं बोला
-: आज का साईं सन्देश :-

पूछें जब हेमांड जी,
उत्तर देवें लोग |
पीड़ा आई गाँव में,
फैला हैजा रोग ||


दूर करें पीड़ा प्रभो,
और करें उपचार |
पीसें हैजा रोग को,
सुखी होय संसार || 

Monday 16 January 2012

साईं का जब इंतजार होता है

ॐ साईं राम
साईं  का  जब  इंतजार  होता  है
 
हर  पल  ये  दिल  निसार  होता  है
 
साईं  तो  है  हमारी  कश्ती  के  खेवैया
 
साईं  सभी  दुखों  को  हरते
 
किसी  और  चीज़  की  सुध  नहीं  रहती
 
साईं  का  जब  इंतजार  होता  है
 
साईं  ने  इतना  दिया  है  कैसे  करूँ  शुक्रिया  मैं
 
हर  पल  सोते  जागते  साईं  का  ही  दीदार  होता  है
 
साईं  का  जब  इंतजार  होता  है

हर  पल  ये  दिल  निसार  होता  है

विशेष आभार :-
माही सिंह जी

-: आज का साईं सन्देश :-
महिला आटा पीसकर,
चार भाग कर जायें |
चारों अपना भाग ले,
जाने भी लग जायें ||

साईंबाबा क्रोध में,
चिल्ला चोट मचाय |
फिर उनको आदेश दें,
सीमा पर बिखराय ||

Sunday 15 January 2012

सुन लै साडी वी अरदास

ॐ साईं राम 
सुन लै साडी वी अरदास,
दे दे सानूँ वी थोडा प्यार,
तेरे दर ते आई मैं साइयां,
मैनु दे थोडा  दुलार,
कर दे मेरा वी बेड़ा पार,
तर जावांगी मैं वी,
भवसागर तों पार,
सुन लै साडी वी अरदास,
साइयां दे थोडा प्यार,
तू ते मेरा मालिक साईं,
तेरे तो ही मेरा घर बार है,
तेरे बिना ते साईं जी,
मेरी चढ़ी न नाव है,
शिर्डी बुला ले मैनु साईं,
तेरे दर्शना दी मैनु आस है,
तेरे सोहणे मुखडे दी,
मैनू प्यास  है,
सुन लै साडी वी अरदास,
दे दे सानूँ वी थोडा प्यार …
यह भजन बाबा की लाडली बेटी साईं आँचल जी द्वारा बाबा के शुभ चरणों में प्रस्तुत किया गया | 
बाबा सदा सुखी रखें |
 
 -: आज का साईं सन्देश :-

बाबा आये क्रोध में,
नाराज़ी झलकाय |
 भक्ति भाव फिर देख कर,
साईं ख़ुशी जताय || 

बाबा का घर बार ना,
महिला करें विचार |
आटा हमरे वास्ते,
सोचें बारम्बार ||

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.